Thursday, September 16, 2010

गरीब......

'गरीब'- इस शब्द में कई अर्थ समाहित है। हमारे देश में तो आजादी से पहले और आजादी के 60 साल बाद भी आज तक इस शब्द के अर्थों में लगातार कई परिवर्तन हुए है । जहाँ आजादी से काफी समय पहले तक इसका अर्थ इज्जत, संस्कार इत्यादि से रहित होना तथा आजादी के समय इसका अर्थ पैसों की कमी होना था वहीँ आज गरीब उसे कहा जाता है जो प्रतिदिन सरकार द्वारा निर्धारित नियत उर्जा की मात्र न ले पाता हो। इस पैमाने के आधार पर ही आज गरीबों को सूचीबद्ध किया जाता है ।
मैंने सदैव अपने आप को इस गरीबी रेखा से ऊपर समझा है और पाया है । मैं सोचता था की मेरे माता पिता दोनों सरकारी कर्मचारी है, मेरा भाई एक निजी कम्पनी में काम करता है तो मैं तो इस गरीबी रखा से काफी ऊपर हूँ। लेकिन आज जब मैं इस बाहर की दुनिया में कदम रखता हूँ तो मैं अपने आप को इन गरीबों की श्रेणी में ही पाता हूँ। इनकी तरह मुझे भी अपने आप में कुछ कमी का अहसास होता है। मैं गरीब हूँ क्यूंकि मुझे सही होते हुए भी न्याय पाने के लिए झूठे सबूत और गवाह खरीदने पड़ेंगे, मैं गरीब हूँ क्यूंकि योग्यता होते हुए भी मेरे पास सिफारिशों का धन नही है।

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