'गरीब'- इस शब्द में कई अर्थ समाहित है। हमारे देश में तो आजादी से पहले और आजादी के 60 साल बाद भी आज तक इस शब्द के अर्थों में लगातार कई परिवर्तन हुए है । जहाँ आजादी से काफी समय पहले तक इसका अर्थ इज्जत, संस्कार इत्यादि से रहित होना तथा आजादी के समय इसका अर्थ पैसों की कमी होना था वहीँ आज गरीब उसे कहा जाता है जो प्रतिदिन सरकार द्वारा निर्धारित नियत उर्जा की मात्र न ले पाता हो। इस पैमाने के आधार पर ही आज गरीबों को सूचीबद्ध किया जाता है ।
मैंने सदैव अपने आप को इस गरीबी रेखा से ऊपर समझा है और पाया है । मैं सोचता था की मेरे माता पिता दोनों सरकारी कर्मचारी है, मेरा भाई एक निजी कम्पनी में काम करता है तो मैं तो इस गरीबी रखा से काफी ऊपर हूँ। लेकिन आज जब मैं इस बाहर की दुनिया में कदम रखता हूँ तो मैं अपने आप को इन गरीबों की श्रेणी में ही पाता हूँ। इनकी तरह मुझे भी अपने आप में कुछ कमी का अहसास होता है। मैं गरीब हूँ क्यूंकि मुझे सही होते हुए भी न्याय पाने के लिए झूठे सबूत और गवाह खरीदने पड़ेंगे, मैं गरीब हूँ क्यूंकि योग्यता होते हुए भी मेरे पास सिफारिशों का धन नही है।
Thursday, September 16, 2010
jindgi
हम अक्सर सोचते हैं की जिन्दगी शायद हर वक्त हमारी परीक्षा ले रही है । जब भी एक समस्या हल होती है दूसरी समस्या के लिए मंच तैयार हो जाता है । अवसाद के समय में हम अक्सर भाग्य को दोष देते है, की शायद सफलता मेरी किस्मत में नही थी, इसी लिए मुझे इन इन मुश्किलों से जूझना पडा । कितुं विफलता का कोई कारण नही होता। इसके एक मात्र उत्तरदायी हम स्वयं है। सफलता सदैव सही दिशा में की गई एक ईमानदार कोशिश चाहती है। जब भी किसी सफल व्यक्ति के बारे में कहा जाता है तो ये सुनते है की उसने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी मंजिल को पाया, क्या सफल बनने के लिए सदैव संभावनाओ का हमारे विपरीत होना ही है? हम क्यों साधन सम्पन्न होते हुए भी सफलता नही पा सकते ? क्यूंकि हम हर बार अपनी हार का ठीकरा किसी न किसी घटना , परिस्थिति या व्यक्ति के सिर पर फोड़ते है।
Subscribe to:
Posts (Atom)