Tuesday, December 1, 2009

मतदान या मत-दान

मतदान यानि अपने मत का दान एक ऐसे योग्य व्यक्ति को करना जो आपके समाज या आपके जिले या आपके राज्य या देश के विकास को एक नई दिशा दे सके..लेकिन आजकल मतदान एक ऐसी विकृत प्रथा बन चुकी जिस पर शायद बहस की जानी चाहिए | आंकड़ो पर गौर किया जाए तो निचला तबका या जिसे हम अनपढ़ या पिछड़ा समझते है, का वोटिंग प्रतिशत हमेशा पढ़े-लिखे समझदार वर्ग से ज्यादा होता है...कामगार मजदूर,फेरी वाले,सब्जी वाले जो शायद ही मतदान के दिन छुट्टी रखते है,लेकिन फ़िर भी अपना वोट डालते है..और एक तरफ हम पढ़े लिखे नौकरीपेशा बुद्धिजीवी वर्ग जो एयरकंडीसन कमरों मैं बैठ कर देश की बिगडती हुई व्यवस्था पर अफ़सोस जताते है लेकिन वोटिंग की प्रक्रिया को धत्ता बताते हुए उस दिन को सिर्फ़ एक छुट्टी मान कर अपने कर्तव्य से इति कर लेते है.और उसी वजह से वोटिंग का प्रतिशत केवल आधे से कुछ ही ज्यादा पहुँच पाता है..और फ़िर संपूर्ण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व एक ऐसा व्यक्ति करता है जिसे केवल आधे क्षेत्र ने ही चुना है...कब तक हम ऐसे ही अपने कर्तव्य से दूर रहेंगे...
कुछ लोगों को सोचना है की वर्तमान मतदान प्रणाली में कुछ दोष है.....ऐसा भी हो सकता है...अगर इस मतदान को भी ई-क्रांति के जरिये ऑनलाइन कर दिया जाए और मतदान की प्रक्रिया को कुछ दिन को लिए एक साथ चलाया जाए तो हो सकता है की युवा वर्ग भी इसमे सक्रिय रूप से भाग ले सके...अंत में यहीं कहूँगा की अपने अधिकारों के साथ अपने कर्तव्य को भी समझे और देश को लिए सोचे...'सोचो और बदलो'